क्या आपको परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास है? यदि विश्वास है तो कभी आपने आजमाया या अनुभव किया है? चलिए एक वचन को देखते हैं। व्यवस्थाविवरण 31:6 तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलने वाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।
वचन पवित्र शास्त्र में लिखा है - क्या विकट परिस्थितियों में हमारा विश्वास, भरोसा और निर्भरता शत-प्रतिशत परमेश्वर के अटल वचन पर रहता हैं या मनुष्य अपनी बुद्धि पर भरोसा करते हैं? अधिकांश समय हम अवसाद, डर व शंका के चपेट में आ जाते हैं जानते हैं क्यों? इसलिए कि हम उस परमेश्वर को साधारण बुद्धि द्धारा आंकते हैं। हम प्रार्थना तो करते हैं पर उत्तर नहीं मिलता क्योंकि स्वार्थ अथवा बुरी मंशा से मांगते हैं। तीन बातों को परमेश्वर बतलाता है:-
1) अविश्वास:- इब्रानि 11:6 विश्वास बिना उसे पसंद करना अनहोना है।
2) गलत उद्देश्य:- याकूब 4:3 तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो।
3 )अनर्थ बातें:- भजन 66:18 यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता।
अपने आप को संपूर्ण हृदय से समर्पण करें। शरीर की पांचों ज्ञान इंद्रियो द्धारा पाप ना करने की ठाने। गलत बातें, पीठ पीछे बुराई करना, मूर्खता की बातें, कपटी मन यह सब क्या है। जो मन में भरा है वह मुंह में आता है। यशायाह 1:15-16 जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। अपने को धोकर पवित्र करो: मेरी आंखों के साम्हने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो।
स्पष्ट निर्देश है पाप से सदा के लिए फिरना चूँकि परमेश्वर पवित्र है वह छोटा सा भी पाप को देख नहीं सकता। पाप हमारे हृदय को मलिन करता है, वास्तव में वो हमारे दिमाग और निर्णय लेने की क्षमता पर प्रहार करता है जिससे हम विश्वास को कार्य रूप में सही ढंग से उपयोग ना कर पाए यदि हम पर अनुग्रह ना हो। पाप हमारे ऊपर एक आवरण ढक देता है जिससे कि हमारी प्रार्थनाएं व्यर्थ के शब्द ठहरते हैं। यह ठीक उसी प्रकार है जैसा पेट्रोल में चीनी, वायरस कंप्यूटर में और बैक्टीरिया हमारे लहू में स्वास्थ्य चुराने के लिए।
दूसरी बात है अपराध। हमें लगता है थोड़ा सा कीचड़ से बच्चों को नुकसान नहीं होगा, थोड़ी मात्रा में जहर द्धारा मनुष्य नहीं मरेगा, थोड़ा पाप, थोड़ा विद्रोह, थोड़ी अनाज्ञाकारिता, थोड़ा अधर्म, ये सब परमेश्वर नजरअंदाज कर देगा।
हम पाप से शुद्ध किए जाते हैं यीशु के क्रूस के बलिदान द्धारा। पापों से मुक्ति यीशु के बहाये गाए लहू से प्राप्त होती हैं और क्रूस हम से जीवन में व्यवहार करता है। हमारे हृदयो की मरम्मत नहीं होती, न हीं नई पत्तियाँ निकलती है वरन हमारे लाल रंग के पाप बर्फ की नाई सफेद कर दी जाती हैं।
1 यूहन्ना 1:7-9 - अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है।
1 यूहन्ना 2:1-2 - हमारा वकील (Advocate)
1 यूहन्ना 3:21-22 - आज्ञा मानने द्धारा हियाव आता है
रोमियो 6:23 - परमेश्वर का वरदान प्रभु यीशु मसीह में अनंत जीवन है
इफिसियों 1:7 - अनुग्रह के धन के द्धारा छुटकारा मिला है
कुलुस्सियों 2:13-14 - मसीह मध्यस्थ बना मानव जाति के लिए
प्रेरितों 15:9 - और विश्वास के द्धारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उन में कुछ भेद न रखा।
दो बहुमूल्य पत्थर हैं विश्वास और मन की शुद्धता जो पवित्रता द्धारा आती है क्योंकि लिखा है बिना पवित्रता के कोई उसको देख नहीं सकता।
परमेश्वर इन वचनों के द्धारा आशीषित करें।
आमीन!
Written By Rev. Dr. Satish Kumar Kujur
वचन पवित्र शास्त्र में लिखा है - क्या विकट परिस्थितियों में हमारा विश्वास, भरोसा और निर्भरता शत-प्रतिशत परमेश्वर के अटल वचन पर रहता हैं या मनुष्य अपनी बुद्धि पर भरोसा करते हैं? अधिकांश समय हम अवसाद, डर व शंका के चपेट में आ जाते हैं जानते हैं क्यों? इसलिए कि हम उस परमेश्वर को साधारण बुद्धि द्धारा आंकते हैं। हम प्रार्थना तो करते हैं पर उत्तर नहीं मिलता क्योंकि स्वार्थ अथवा बुरी मंशा से मांगते हैं। तीन बातों को परमेश्वर बतलाता है:-
1) अविश्वास:- इब्रानि 11:6 विश्वास बिना उसे पसंद करना अनहोना है।
2) गलत उद्देश्य:- याकूब 4:3 तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो।
3 )अनर्थ बातें:- भजन 66:18 यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता।
अपने आप को संपूर्ण हृदय से समर्पण करें। शरीर की पांचों ज्ञान इंद्रियो द्धारा पाप ना करने की ठाने। गलत बातें, पीठ पीछे बुराई करना, मूर्खता की बातें, कपटी मन यह सब क्या है। जो मन में भरा है वह मुंह में आता है। यशायाह 1:15-16 जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। अपने को धोकर पवित्र करो: मेरी आंखों के साम्हने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो।
स्पष्ट निर्देश है पाप से सदा के लिए फिरना चूँकि परमेश्वर पवित्र है वह छोटा सा भी पाप को देख नहीं सकता। पाप हमारे हृदय को मलिन करता है, वास्तव में वो हमारे दिमाग और निर्णय लेने की क्षमता पर प्रहार करता है जिससे हम विश्वास को कार्य रूप में सही ढंग से उपयोग ना कर पाए यदि हम पर अनुग्रह ना हो। पाप हमारे ऊपर एक आवरण ढक देता है जिससे कि हमारी प्रार्थनाएं व्यर्थ के शब्द ठहरते हैं। यह ठीक उसी प्रकार है जैसा पेट्रोल में चीनी, वायरस कंप्यूटर में और बैक्टीरिया हमारे लहू में स्वास्थ्य चुराने के लिए।
दूसरी बात है अपराध। हमें लगता है थोड़ा सा कीचड़ से बच्चों को नुकसान नहीं होगा, थोड़ी मात्रा में जहर द्धारा मनुष्य नहीं मरेगा, थोड़ा पाप, थोड़ा विद्रोह, थोड़ी अनाज्ञाकारिता, थोड़ा अधर्म, ये सब परमेश्वर नजरअंदाज कर देगा।
हम पाप से शुद्ध किए जाते हैं यीशु के क्रूस के बलिदान द्धारा। पापों से मुक्ति यीशु के बहाये गाए लहू से प्राप्त होती हैं और क्रूस हम से जीवन में व्यवहार करता है। हमारे हृदयो की मरम्मत नहीं होती, न हीं नई पत्तियाँ निकलती है वरन हमारे लाल रंग के पाप बर्फ की नाई सफेद कर दी जाती हैं।
1 यूहन्ना 1:7-9 - अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है।
1 यूहन्ना 2:1-2 - हमारा वकील (Advocate)
1 यूहन्ना 3:21-22 - आज्ञा मानने द्धारा हियाव आता है
रोमियो 6:23 - परमेश्वर का वरदान प्रभु यीशु मसीह में अनंत जीवन है
इफिसियों 1:7 - अनुग्रह के धन के द्धारा छुटकारा मिला है
कुलुस्सियों 2:13-14 - मसीह मध्यस्थ बना मानव जाति के लिए
प्रेरितों 15:9 - और विश्वास के द्धारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उन में कुछ भेद न रखा।
दो बहुमूल्य पत्थर हैं विश्वास और मन की शुद्धता जो पवित्रता द्धारा आती है क्योंकि लिखा है बिना पवित्रता के कोई उसको देख नहीं सकता।
परमेश्वर इन वचनों के द्धारा आशीषित करें।
आमीन!
Written By Rev. Dr. Satish Kumar Kujur
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