परमेश्वर
की महिमा
(वाचा का संदूक से मनुष्य का आत्मा)
1 कुरिन्थियों 6:19
क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो?
प्रेरितों के काम 7:48-50 में वचन कहता है परमेश्वर हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता क्योंकि स्वर्ग उसका सिहासन और पृथ्वी उसके पांव तले की पीढ़ी है - हमारा परमेश्वर विराट है। उसने मनुष्य की सृष्टि की अपने दैवीय कार्य एवं उद्देश्य को एक विश्वासी के जीवन / शरीर द्वारा पूरा करना चाहता है, यही कारण है कि उसे वो मंदिर बनाना चाहता है। मंदिर पवित्रता का घोतक है।
यह संभव कैसे है?
(रोमियो 6:19) मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपने अंगो को कुकर्म के लिये अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धर्म के दास करके सौंप दो।
और परमेश्वर संभव करता है अपनी पवित्र आत्मा को हमारी आत्मा से जोड़कर, क्योंकि आज त्रिएक परमेश्वर का प्रतिनिधि पृथ्वी पर वास करने आया है। (प्रेरित 2:4) और इसी की शक्ति द्वारा हम भले एवं पवित्र कार्यों में संलग्न हो सकते हैं। जैसा कि (1 कुरिन्थियों 6:13) में लिखा है देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है। और जब प्रभु देह के लिए होगा तभी ना हम पुनरुत्थान के भागी होंगे।
एक उदाहरण द्वारा इसे समझिए:-
अपना घर - रखरखाव की जिम्मेदारी मेरी
भाड़े का घर - घर मालिक की जिम्मेदारी
यीशु का हमारे शरीर के ऊपर सीमित अधिकार होने के कारण वो पूरी जिम्मेदारी हमारे शरीर का नहीं ले सकता परंतु यदि वह इस शरीर को अपना लेता है तो किसी भी हाल में इसकी सुरक्षा की गारंटी उसके हाथों में है।
कुरिन्थियों 6:20
वचन कहता है हम अपने शरीर और आत्मा से परमेश्वर को महिमा दे। हमारा आत्मा, प्राण एवं शरीर शैतान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है बशर्ते हम अपने शरीर को पवित्रता के दायरे में रखे।
पवित्रता संयमित सोच व विचारधारा पर आधारित है और किसी भी कार्य को करने के पहले यदि हमें परमेश्वर का भय होगा तो हम सही निर्णय लेने में सफल होंगे पवित्र आत्मा द्वारा। पवित्र आत्मा जो सत्य का आत्मा है उसी की अगुवाई में हम स्वतंत्र होते हैं।
दूसरी मुख्य बात है उसकी आवाज को सुनना वह मानना। वचन कहता है मेरी आज्ञाओ को मानो तो मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरुँगा (यिर्मयाह 7: 22 – 23)। शरीर और आत्मा विरोध में है (रोमियो 8:13)। परमेश्वर की चाहत है पुराने मनुष्यत्व को मारना है और नई सृष्टि बनना है। (2 कुरिन्थियों 5:17) सृष्टि मनुष्य नहीं बना सकता सिर्फ सृष्टिकर्ता ही कर सकता है तीतुस 3:5 कहता है हम स्वभाव से ही गंदे हैं और यीशु का लहू ही हमें शुद्ध करता है आवश्यकता है अपने पापों को मान लेवे। 1यूहन्ना 1:9 भूतकाल के पाप क्षमा करके हमें शुद्ध करता है 1यूहन्ना 1:7 और नया जन्म पाने का अवसर मिलता है (यूहन्ना 3:3, 3:6)। भजन संहिता 51:10 दाऊद कराह उठाता है “मुझमें एक नया ह्रदय पैदा कर” यह मनुष्य के प्रयास से नहीं हो सकता वचन हमें धोता है, शुद्ध करता है, नया जन्म देता है, मस्तिष्क को नया बनाता है और नई सृष्टि बनाता है तब जाकर हमारा शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर बनता है जिसमें पिता और यीशु अर्थात तीनों आकर निवास करते हैं
प्रार्थना: पिता परमेश्वर हम तुझे धन्यवाद देते हैं कि तूने अपने पुत्र के बलिदान के द्वारा हमारे लिए उधार को प्रदान किया हमें अगवाई दें कि पवित्र आत्मा द्वारा अपने अंदर आज्ञापालन पवित्रता और सहभागिता में नित्य आत्मिक रूप से बदलते जाएं धन्यवाद के साथ आमीन
By Rev. Dr. Satish Kumar Kujur
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