* मरकुस 3ः 7-10 और 6ः 53-56
*यीशु ने दूसरों के लिए जीवन व्यतीत किया*
‘‘....यीशु नासरी .... वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा।“ (प्रेरितों 10ः 38)
सुसमाचार बहुत स्पष्ट रूप से यीशु का सबसे उत्कृष्ट प्रोफाइल दिखाता है जिसकी तुलना पृथ्वी के किसी भी इंसान से नहीं किया जा सकता है। सबसे पहले, यीशु दूसरों के लिए जीये। उन्होंने हमेशा खुद को दूसरों के लिए उपलब्ध बनाया। वह लगभग किसी के भोजन के निमंत्रण को भी स्वीकार करते थे और परिणामस्वरूप उनके पास दोस्तों की एक विविध सूची थी अमीर लोग से लेकर, रोमन सूबेदार, फरीसी, कर संग्रहकर्ता, वेश्याएँ और यहाँ तक कि वो लोग जो कुष्ठ रोग से पीडि़त थे। वे जहाँ भी थे, वहाँ आनंद था। लोग यीशु के साथ रहना पसंद करते थे। सिर्फ उनके शक्तिशाली शब्द सुनने के लिए, वे उनके साथ भोजन के बिना भी बैठने के लिये तैयार थे। वह यंत्रवत सख्त अनुसूची का पालन नहीं करते थे। वे शादी की दावत में भाग लेते थे जो दिनों तक चलता था। वे हर किसी की मदद करते थे जो उनके रास्ते में आते थे चाहे वह कोई महिला हो जिसे बारह साल से रक्त की समस्या थी या एक अंधा भिखारी हो। दूसरी बात, उन्होंने अपने शिष्यों से अपनी भावनाओं को नहीं छिपाया और न ही उन्होंने उनकी मदद माँगने में संकोच किया। उदाहरण के लिए, गतसमनी के बगीचे में कम से कम तीन बार उन्होंने उनके सामने यह कहते हुए रोया, “मेरा जी बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरा प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।“ आज कितने मजबूत नेता अपने आप को इतना कमजोर बनायेंगे! तीसरा, वे लोगों की तारीफ करना पसंद करते थे। उदाहरण के लिए - उन्होंने नतनएल को सचमुच इस्राएली कहा, जिसमें कपट नहीं है। यूहन्ना बपतिस्मा के बारे में उन्होंने कहा कि, जो स्त्रियों से जन्मे हैं उन में से यूहन्ना से कोई बड़ा नहीं हुआ। उन्होंने शमौन पतरस का नाम बदल दिया, जिसमें उतार-चढ़ाव वाला चरित्र था, और उसे पतरस पत्थर के रूप में कहा। चैथा, वे जिन लोगों से मिले उन से जल्दी से अंतरंगता स्थापित करते थे। हम पढ़ते हैं कि अनुभवी मछुआरे, जैसे पतरस, अन्द्रियास, यूहन्ना और याकूब ने भी अपना जाल छोड़ दिया और बिना कोई प्रश्न पूछे उन्होंने उनके साथ मिलने के बाद उनका अनुसरण किया। यीशु से पहली बार मिलने पर ही कुएँ की सामरी महिला में महान परिवर्तन आया। इस में और कई अन्य उदाहरणों में, हम पढ़ते हैं कि जो भी यीशु से मिले, उनसे बातचीत की कुछ संक्षिप्त पंक्तियों के बाद ही वे उनके अंतरतम रहस्य के बारे में बता देते थे।
प्रिय दोस्तों, आइए हम न केवल यीशु के गुणों की प्रशंसा करें बल्कि हम भी वैसा करने की कोशिश करें जैसा उन्होंने किया और दुनिया को दिखाये कि हम उनके शिष्य हैं।
*प्रार्थनाः* स्वर्गीय पिता, यीशु ने खुद को उन लोगों के लिए उपलब्ध कराया जो जरुरत में थे। उन्होंने बिना किसी रोक-टोक के लोगों की सराहना की। भले ही वे परमेश्वर के पुत्र थे, फिर भी अपने शिष्यों से मदद माँगने की हिम्मत उनमें थी। मुझे उनके द्वारा प्रेरित होना चाहिये और उनका उदाहरण का अनुसरण करना चाहिये। आमीन।
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