मत्ती 5:23-24
इसलिये यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि तेरे भाई के मन में तेरे लिये कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।
जब परमेश्वर ने अपने चुने हुओं को दिव्य व्यवस्था दिया, तब विभिन्न बलिदानों से संबंधित भी नियम दिए थे। बलिदानों का उद्देश्य व प्रयोजन लोगों को पाप की गंभीरता और उसके परिणाम को समझाना था। जब वे बलि चढ़ाने के लिए किसी जानवर को लाते हैं, तब पाप बलि के लिए चढ़ाने वाले जानवर की चिल्लाहट की गंभीरता एक अपराधी के हृदय पर प्रभाव डालती है। वह अपना हाथ उस जानवर पर रखकर अपनी गलती को स्वीकार करता है, और इस प्रकार उसका पाप एक निर्दोष जानवर पर डाला जाता है। तब वह पशु उनके पाप का सजा अपने ऊपर उठाता है।
परन्तु जैसे दिन गुज़रते गए शास्त्रियों और धर्म अधिकारियों ने इसके लिए बहुत से अलग उपाय निर्धारित कर लिए और उन्होंने बलिदानों के स्तर को गिराते हुए मात्र एक रीति-रिवाज में बदल दिया। बलिदान के लिए हर एक आवश्यक वस्तु मंदिर के आँगनों में उन्हें मिल जाता था, और एक अपराधी को बलि पशु लाने के लिए शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ती थी। जब यीशु सेवा कर रहे थे तब मंदिर की स्थिति इतनी दयनीय थी कि दो महायाजक उसमें इकट्ठा सेवा कर रहे थे।
यीशु ने दो बार मंदिर को साफ करने के लिए कोड़े का इस्तेमाल किया, और मंदिर में काम रहे व्यापारियों को बाहर निकाला। मंदिर में परमेश्वर की उपस्थिति के भय का अभाव के कारण जो लोग प्रार्थना और बलि चढ़ाने के लिए आते थे, वे भी आत्मिक विषयों के बारे में गंभीर नहीं होते थे। हम यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को जंगल में सेवा करते देखते हैं, न की मंदिर में। जैसे लोग अपने आत्मिक स्थिति को देखकर निराश थे वे यूहन्ना के पास सुसमाचार सुनने के लिए जाते थे। लोगों ने अपनी ग़लतियों को अंगीकार किया कि वे परमेश्वर की महिमा से रहित है और उन लोगों ने मन फिराव का बपतिस्मा भी लिया।
अब यीशु उस ‘उद्देश्य’ के बारे में शिक्षा दे रहे हैं जिसके लिए बलिदान का अध्यादेश दिया गया था और किस मन से उसको चढ़ाना भी था। बलिदान इसलिए चढ़ाए जाते थे ताकि परमेश्वर के साथ टूटा हुआ संबंध फिर से जुड़ जाए। यीशु जानता था कि परमेश्वर के मेम्ने का सिद्ध बलिदान थोड़ी देर में चढ़ाया जाएगा और फिर किसी दूसरे बलिदान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
परमेश्वर चाहता है मनुष्य अपने संगी भाइयों के साथ सही संबंध बनाकर रखे और उस प्रेम को प्रकट करें जो हमें परमेश्वर से रखना चाहिए। यदि एक व्यक्ति पूरे मन से परमेश्वर से और उसकी आज्ञाओं से प्रेम करता है तो वह उन चीजों को न करने में चौकस रहेगा जिससे परमेश्वर दुःखी होता है। बहुत लोग सोचते हैं कि परमेश्वर से क्षमा माँगने से सब गलती ढक जाएगी। इसलिए वे दूसरे व्यक्ति के साथ मेल करने की आवश्यकता को नजर-अंदाज़ करते हैं, जिनके साथ अपराध किया गया था क्योंकि ऐसा करने के लिए उनको उसके सामने नम्र बनना पड़ेगा और मेल रखने की ओर कदम उठाने के लिए अपनी खुदी को एक तरफ रखना पड़ेगा। परन्तु परमेश्वर चाहता है कि हम अपने स्वभाव को ठीक करें और अपनी ग़लतियों को सुधारे ताकि हम उसे दोबारा न दोहराये। इसलिए यीशु उनको परमेश्वर की आराधना करने से पहले उनको अपने भाई के साथ मेल करने की शिक्षा देते हैं।
स्मरण रखे आराधना रविवार व प्रार्थना सभाओं तक ही सीमित नहीं होती। परन्तु सच्ची आराधना वह सुखदायक सुगन्ध है जो तब जलती है जब हम परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन व्यतीत करते हैं। उसमें वह समय भी शामिल है जो हम परमेश्वर की उपस्थिति में और संसार में दूसरों के साथ भी बिताते हैं। परमेश्वर हम से चाहता है कि हम भीतर और बाहर दोनों तरफ से ठीक हो, ताकि दूसरे हम में मसीह के स्वभाव को देख सके।
बेशक बहुत बार हम आराधना करते हैं तो भी परमेश्वर उसे अस्वीकार करता है, और हम अपनी आत्मा में ख़ालीपन को महसूस करते हैं। इसलिए आइए हम अपने आप को जाँचे - क्या हमारा भेंट चढ़ाना परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला है या यह मात्र एक रीति रिवाज है? क्या हम उस शांति को अनुभव करते हैं जो परमेश्वर की उपस्थिति में मिलती है? यदि नहीं, तो हम अपने जीवनों को जाँचे और उन ग़लतियों को ढूँढे जिन से परमेश्वर शोकित होता है।
आइए, हम अपनी छिपे हुई पापों को पहचानने के लिए पवित्र आत्मा से मदद माँगे।
परमेश्वर इसमें हमारी सहायता करें।
आमीन ।
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